दोस्तों नमस्कार, खेती की दुनिया में आधुनिक तकनीकों और तरीकों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादकता, टिकाऊपन और लाभप्रदता हासिल हो रही है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि किस तरह से मॉडर्न खेती के अनोखे टिप्स अपनाकर आप अपनी कृषि को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं।
मॉडर्न खेती (Modern Farming Methods) में ड्रिप इरिगेशन, हाइड्रोपोनिक्स,जैविक खेती, बायो- फ्लॉक तकनीक, और स्मार्ट उपकरणों का उपयोग शामिल है। इससे पानी की बचत होती है, फसलों की गुणवत्ता बढ़ती है, और कीट एवं बीमारियों का नियंत्रण बेहतर तरीके से हो पाता है। इसके अलावा, यह किसानों की आय को बढ़ाने में भी सहायक है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरती है और खेती अधिक स्थिर बनती है। मॉडर्न खेती न केवल उत्पादन को बढ़ावा देती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता बनी रहती है।
मॉडर्न खेती के प्रकार -
आइए हम जानते हैं आधुनिक खेती (modern technology in agriculture) के बारे में जानकारी, जो नीचे दी गई है:
A. हाइड्रोपोनिक्स -
हाइड्रोपोनिक्स एक ऐसी पद्धति है जिसमें पौधों को मिट्टी के बजाय पोषक तत्वों से भरपूर पानी में उगाया जाता है। यह विधि शहरी क्षेत्रों में खेती के लिए आदर्श है जहाँ जगह की कमी होती है। हाइड्रोपोनिक्स से पानी की बचत होती है क्योंकि पानी को पुनः चक्रित किया जाता है। इसके अलावा, यह विधि पौधों के पोषक तत्वों के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली और अधिक उपज प्राप्त होती है।
आइए हम नीचे पॉइंट में जानते है हाइड्रोपोनिक चारा बनाने की विधि -
1. आप हाइड्रोपोनिक चारा बनाने के लिए मक्का के दाने 12 घंटों के लिए एक ड्रम में पानी में भिगोएं।
2. भिगोए हुए दानों को निकालकर 24 घंटे के लिए गीले जूट की बोरी में भरें। दानों को गीले जूट की दूसरी बोरी से ढकें ताकि अंकुरण अच्छे से हो सके।
3. 18 बाय 24 इंच की प्लास्टिक ट्रे लेकर उसमें 24 घंटे बाद 1.8 किलो मक्का के दाने डालें।
4. 9 दिनों के बाद, एक ट्रे में 9 से 10 किलो हाइड्रोपोनिक चारा तैयार हो जाएगा।
5. 25 बाय 40 फीट के क्षेत्र में 20 पशुओं के लिए ढांचा बनाने में लगभग 3,00,000 रुपये खर्च होंगा। इसमें 12 महीने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर चारा मिल जाएगा।
6. मक्का, मेथी, चना, गेहूं, और मूंग का हाइड्रोपोनिक खेती में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन सबसे अधिक 75% मक्का का उपयोग करें। बाकी 25% में अन्य बीजों का उपयोग करें।
B. बायो-फ्लॉक तकनीक
बायो-फ्लॉक तकनीक एक स्थिर और पुनरावृत्त प्रणाली है जिसमें मछलियों के पालने के लिए एक नियंत्रित वातावरण तैयार किया जाता है। इस तकनीक में, जल के भीतर सूक्ष्म जीवाणुओं (फ्लॉक) की सांद्रता को नियंत्रित किया जाता है, जो मछलियों के लिए एक पोषक तत्वों का स्रोत बनते हैं और जल की गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
आइए हम नीचे पॉइंट में जानते है बायो-फ्लॉक बनाने की विधि:
1. बायो-फ्लॉक का 10-15 हजार लीटर के एक टैंक को बनाने के लिए लगभग 40 से 50 हजार रुपये खर्च आता है।
2. एक गोल या आयताकार टैंक तैयार करें। आमतौर पर, टैंक की गहराई 1-2 मीटर होती है और व्यास 3-10 मीटर तक हो सकता है।
3. टैंक बनाने के लिए 6 मिमी जाली का उपयोग करें और इस जाली को वेल्डिंग से अच्छी तरह पैक कर लें। फिर बाहर की तरफ एक परत वर्टो और सीमेंट से पैक करें बाद जाली को पैंट करें।
4. इसके बाद, टैंक के सेंटर में 2.5 से 3 इंच के पाइप का आउटलेट निकाल दीजिए और उस आउटलेट को सेंटर में सीमेंट से अच्छी तरह पैक कर लीजिए।
5. टैंक नीचे रेत की 4 इंच परत बनाने के अच्छा स्लोप दे।
6. टैंक के सेंटर में जो 2 फीट ऊँचा पाइप है, उसे ड्रिल मशीन से छोटे-छोटे होल बना दीजिए ताकि मछलियों का वेस्ट वॉटर आसानी से बाहर निकल सके।
7. टैंक में जाली के अंदर की मुख्य तिरपाल को सुरक्षित रखने के लिए, कम जीएसएम का एक तिरपाल टाइट करके बांध दीजिए
8. इसके बाद, 500 से 700 जीएसएम का तिरपाल अंदर की तरफ आउटलेट को अच्छी तरह से अटैच करके बिछा दीजिए।
9. यह आपका टैंक तैयार हो गया है। अब उसमें पानी भरें और ऊपर की ओर पक्षियों या धूल-मिट्टी से बचाने के लिए हरा या सफेद नेट डाल दीजिए।
C. ड्रोन तकनीक
आइए नीचे पॉइंट में ड्रोन तकनीक का महत्व जान लेते हैं:
1. ड्रोन से फसलों की तस्वीरें और वीडियो लेकर उनकी स्वास्थ्य स्थिति का मूल्यांकन किया जा सकता है, जिससे रोग या कीटों की समस्या का जल्दी पता लगाया जा सकता है।
2. ड्रोन का उपयोग उर्वरकों और कीटनाशकों के सही वितरण के लिए किया जा सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है और लागत कम होती है।
3. ड्रोन का उपयोग मौसम संबंधी डेटा संग्रहित करने के लिए किया जा सकता है, जिससे किसान मौसम की भविष्यवाणी और उसकी तैयारी कर सकते हैं।
4. कीटनाशक और उर्वरकों का छिड़काव ड्रोन के माध्यम से किया जा सकता है, जिससे समय की बचत होती है और छिड़काव अधिक सही होता है।
5. सूखा, बाढ़ या अन्य आपातकालीन स्थितियों में ड्रोन से स्थिति की निगरानी कर त्वरित निर्णय लिया जा सकता है।
धान की फसल में फुटाव के लिए आप 25 मिली IFC Scuba और 75 ग्राम IFC 12:61:00 को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
4. ऊर्ध्वाधर खेती
बढ़ती आबादी के साथ-साथ जमीन भी कम होती जा रही है इसलिए हमें ऊर्ध्वाधर खेती (Vertical Farming) करना बहुत जरूरी है इसमें जिनके पास कम जमीन वो भी अच्छा पैसा कमा सकते हैं। यह तकनीक (Farming Technique) शहरी क्षेत्रों में जगह की कमी के कारण इमारत की छत, दीवारें, या इंटीरियर्स पर कर सकते है इसके साथ यह खेती पूरी तरह से ऑर्गैनिक होती है।
आइए नीचे पॉइंट जानते हैं ऊर्ध्वाधर खेती कैसे करें -
1. स्थान चुनें: एक उपयुक्त स्थान चुनें, जैसे छत, दीवार, या खाली स्थान।
2. संरचना डिजाइन: वर्टिकल गार्डन या रैक सिस्टम डिज़ाइन करें, जिसमें पॉट्स या ग्रोइंग टावर्स शामिल हों।
3. सामग्री: मजबूत सामग्री जैसे धातु, प्लास्टिक, या लकड़ी का उपयोग करें।
4. निर्माण: डिज़ाइन के अनुसार ढांचा बनाएं और सुनिश्चित करें कि वह स्थिर और सुरक्षित हो।
5. सिंचाई और लाइटिंग: सिंचाई प्रणाली (ड्रिप या स्प्रिंकलर) और लाइटिंग सिस्टम (प्राकृतिक या कृत्रिम) इंस्टॉल करें।
6. पौधे लगाएं: वर्टिकल ढांचे में पौधों को लगाएं और उनकी नियमित देखभाल करें।
मॉडर्न खेती और पारंपरिक खेती में फरक -
नीचे टेबल में जानते हैं मॉडर्न खेती और पारंपरिक खेती (difference between traditional and modern agriculture) बीच में क्या फरक है:
क्र |
मॉडर्न खेती |
पारंपरिक खेती |
1. |
इसमें उन्नत तकनीकों और मशीनरी का उपयोग होता है, जैसे ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर, और स्वचालित सिंचाई प्रणाली। |
इसमें पारंपरिक तकनीकों का उपयोग होता है,जैसे मैनुअल श्रम, जानवरों की ताकत, और साधारण उपकरण। |
2. |
सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों और हर्बीसाइड्स का उपयोग करती है। |
आमतौर पर जैविक या न्यूनतम इनपुट जैसे खाद और प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग करती है। |
3. |
उन्नत तकनीकों और सुधारित फसल प्रजातियों के उपयोग से उच्च उपज और उत्पादकता प्राप्त करती है। |
सामान्यतः कम उपज और उत्पादकता होती है, पारंपरिक विधियों और कम इनपुट्स के कारण। |
4. |
मशीनरी और ऑटोमेशन के उपयोग से मैनुअल श्रम को कम करती है, जिससे दक्षता बढ़ती है। |
मुख्य रूप से मैनुअल श्रम और पारिवारिक सदस्यों पर निर्भर रहती है। |
5. |
वैज्ञानिक ज्ञान, अनुसंधान-आधारित विधियाँ, और कुशल खेती प्रथाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण शामिल करती है। |
पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों के माध्यम से प्राप्त पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं पर आधारित होती है। |
सारांश -
मॉडर्न खेती की तकनीकें जैसे हाइड्रोपोनिक्स, बायो-फ्लॉक, ड्रोन तकनीक, और ऊर्ध्वाधर खेती कृषि को अधिक उत्पादक और टिकाऊ बनाती हैं। हाइड्रोपोनिक्स में पौधे पानी में उगाए जाते हैं, बायो-फ्लॉक मछलियों के लिए नियंत्रित वातावरण बनाता है, ड्रोन फसल की निगरानी में मदद करता है, और ऊर्ध्वाधर खेती सीमित स्थान में अधिक उपज देती है। इन विधियों से किसानों को अधिक लाभ और स्थिरता मिलती है, साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा भी होती है।
अक्सर पूछे जानें वाले प्रश्न -
1. कौन सी खेती में ज्यादा मुनाफा है?
उत्तर - मॉडर्न खेती में ज्यादा मुनाफा है।
2. हाइड्रोपोनिक खेती क्या होता है?
उत्तर - बिना मिट्टी, यानी सिर्फ पानी पर जो खेती की जाती है, उसे हाइड्रोपोनिक खेती कहा जाता है।
3. वर्टिकल प्लांट क्या है?
उत्तर - जिन किसानों के पास जमीन नहीं है, वे इमारत की छत, दीवारों, या इंटीरियर्स पर जो खेती करते हैं, उसे वर्टिकल खेती कहा जाता है।
4. ड्रोन मशीन की कीमत कितनी है?
उत्तर - 3.50 लाख से आगे ड्रोन मशीन मिल जाते हैं।
5. ड्रोन कितनी जल्दी 1 एकड़ जमीन पर कीटनाशकों का छिड़काव करता है?
उत्तर - 8 से 10 मिनट में एक ड्रोन एक एकड़ क्षेत्र का छिड़काव पूरा कर सकता है।
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लेखक -
BharatAgri Krushi Doctor