हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और यहां की खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पशुओं के लिए हरे चारे की उपज भी है। मक्का एक प्रमुख चारा फसल है जो किसानों के लिए हरा चारा प्रदान करने का एक सस्ता और प्रभावी उपाय है। इस ब्लॉग में हम मक्का की चारे वाली खेती की सम्पूर्ण जानकारी देंगे, जिसमें बुवाई से लेकर कटाई तक की सभी महत्वपूर्ण बातें शामिल होंगी।
देश में चारे की कमी और मक्का का महत्व
भारत में पशुधन की संख्या अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है, लेकिन चारे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन का हिस्सा केवल 4% के करीब है। इससे किसानों को मक्का जैसी फसलों के माध्यम से अपनी जरूरत का हरा चारा उगाने का एक सुनहरा अवसर मिलता है।
मक्का एक ऐसा पौष्टिक हरा चारा प्रदान करता है जो दुधारू पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है। इस फसल से लगभग 25% तक दूध उत्पादन बढ़ सकता है, जिससे किसानों को बेहतर आय मिल सकती है। विशेषकर गर्मियों के महीनों में, जब अन्य चारा फसलें उपलब्ध नहीं होती, मक्का एक महत्वपूर्ण विकल्प बन जाता है।
मक्का की उन्नत किस्मों का चयन
किसी भी फसल की सफलता और उत्पादकता काफी हद तक उसकी किस्म पर निर्भर करती है। मक्का की उन्नत किस्मों के चयन से किसान अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। मक्का की किस्में ऐसी होनी चाहिए जो न सिर्फ ज्यादा उपज दें, बल्कि कीट और रोग प्रतिरोधक भी हों।
कुछ प्रमुख किस्में जैसे अफ्रीकन टाल, प्रताप मक्का-6, गंगा-2, गंगा-5, जे-1006 इत्यादि उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।
हाइब्रिड हरे चारे वाली किस्म
हरे चारे की किस्म |
बीज दर प्रति एकड़ |
5 से 6 किलो प्रति एकड़ |
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5 से 6 किलो प्रति एकड़ |
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8 से 10 किलो प्रति एकड़ |
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10 से 12 किलो प्रति एकड़ |
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500 ग्राम प्रति एकड़ |
बीज उपचार और बुवाई
बीज उपचार एक महत्वपूर्ण चरण है जो फसल को बीमारियों और कीटों से बचाने में मदद करता है। लोबिया जैसी दाल वाली फसलों को बुवाई से पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए, जिससे जड़ों में नाइट्रोजन संग्रहण की क्षमता बढ़ती है।
मक्का की बुवाई के लिए मिट्टी में उचित नमी का होना आवश्यक है। बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करके इसे तैयार किया जाना चाहिए। बीज को 25-30 सेमी की दूरी पर कतारों में बोया जाता है और बीज की गहराई 5-6 सेमी रखी जाती है।
बुवाई का समय फरवरी-मार्च के महीने में सबसे उपयुक्त होता है, जिससे मई-जून में हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।
उर्वरक और खाद प्रबंधन
मक्का की फसल के लिए उर्वरक और खाद प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। मक्का घास कुल की फसल होने के कारण इसे नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है। मक्का की फसल को प्रति हेक्टेयर 60-90 किलोग्राम नाइट्रोजन और 25-30 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा खेत में मिला दें। बाकी बची नाइट्रोजन बुवाई के एक माह बाद दें।
लोबिया जैसी दलहनी फसल के साथ मक्का की मिश्रित खेती करना फायदेमंद होता है। लोबिया की फसल में नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है, इसलिए इसके साथ मक्का की खेती से संतुलित पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है।
सिंचाई
मक्का की फसल को सिंचाई की अच्छी व्यवस्था चाहिए होती है, खासकर गर्मियों में। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद अवश्य कर दें। इससे बीज को उचित नमी मिलती है और बेहतर अंकुरण होता है। पहली सिंचाई हल्की करें, जबकि दूसरी और तीसरी सिंचाई 15-20 दिनों के अंतराल पर करें। सिंचाई का समय सही रखने से चारे की उपज अच्छी होती है।
फसल सुरक्षा
मक्का की खेती में कीट और बीमारियों से बचाव भी आवश्यक है। मक्का पर तना छेदक कीट का प्रकोप अधिक होता है। इसे नियंत्रित करने के लिए 5-7.5 किलोग्राम फोरेट 10 जी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें, या फिर ट्राइकोग्रामा परजीवी का इस्तेमाल करें।
खरपतवार नियंत्रण के लिए 2 किलोग्राम एट्राजीन को 600 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें।
चारे की कटाई
मक्का और लोबिया की चारा फसलों को 60-65 दिन के भीतर काटा जा सकता है। इनकी कटाई का समय महत्वपूर्ण है क्योंकि फसल के पोषक तत्व कटाई के समय पर निर्भर करते हैं। जब मक्का में 50% फूल आ जाएं, तो उसकी कटाई कर लेनी चाहिए।
प्रति हेक्टेयर लगभग 400-800 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है। इस प्रकार की खेती से किसानों को न सिर्फ अधिक चारा प्राप्त होता है, बल्कि पशुओं के लिए पौष्टिक आहार भी मिलता है, जिससे उनके दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
मक्का और लोबिया की संयुक्त खेती
मक्का और लोबिया की संयुक्त खेती से किसान बेहतर उत्पादन और पौष्टिकता प्राप्त कर सकते हैं। लोबिया एक फलीदार फसल है, जो मक्का के साथ मिलाकर बोई जाती है, तो यह मक्का को प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन प्रदान करती है, जिससे मक्का की उपज बढ़ती है।
दोनों फसलों को मिलाकर बोने से प्रति हेक्टेयर लगभग 400 क्विंटल हरा चारा प्राप्त हो सकता है। यह चारा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है, जिससे पशुओं को अधिक पौष्टिक आहार प्राप्त होता है।
सारांश:
मक्का की चारा खेती किसानों के लिए एक लाभकारी उपाय है, जिससे उन्हें न सिर्फ पशुओं के लिए पौष्टिक हरा चारा मिलता है, बल्कि इसके उत्पादन से होने वाले खर्चों में भी कमी आती है। मक्का और लोबिया की संयुक्त खेती से भी उत्पादकता और पौष्टिकता में वृद्धि होती है।
इस प्रकार, अगर किसान उन्नत तकनीकियों का सही तरीके से उपयोग करें और समय पर खेत की देखभाल करें, तो मक्का की चारा फसल से उन्हें बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सकता है, जिससे उनकी आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी।
लेखक
BharatAgri Krushi Doctor