नारियल (Cocos nucifera) एक महत्वपूर्ण तिलहन और फलों की फसल है, जिसे विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। नारियल की खेती का उपयोग तेल, पानी, दूध, छिलके, और कोयर (नारियल के रेशे/किस) जैसे विभिन्न उत्पादों के लिए किया जाता है। इसके अलावा, नारियल का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, जिस कारण इसको कल्पवृक्ष भी कहा जाता है विशेष रूप से दक्षिण भारत में। इस ब्लॉग माध्यम से जानें नारियल की खेती का समय, बेस्ट किस्में, उर्वरक प्रबंधन, खरपतवार, कीटों और रोगों का नियंत्रण की सम्पूर्ण जानकारी के बारें में।
भारत में नारियल की खेती
भारत में नारियल की खेती मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, गोवा, और पश्चिम बंगाल में की जाती है। केरल को "नारियल की भूमि" के नाम से भी जाना जाता है, जहां नारियल की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है।
खेती का समय
नारियल की खेती किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन मानसून की शुरुआत से पहले या उसके तुरंत बाद पौधारोपण का समय सबसे उपयुक्त होता है। इस समय में मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है जो पौधों के अच्छे विकास के लिए आवश्यक है।
मौसम और जलवायु
नारियल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसे 23°C से 32°C तापमान और 1500 मिमी से 2500 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और सर्दियों में पाला नारियल के पौधों के लिए हानिकारक हो सकता है।
खेत की तैयारी
नारियल की खेती के लिए खेत की तैयारी में भूमि को गहरी जुताई, अच्छे जल निकासी की व्यवस्था, और 7-10 मीटर की दूरी पर गड्ढे तैयार करना चाहियें । गड्ढों की गहराई 1 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर होनी चाहिए। गड्ढों को तैयार करने के बाद इसमें अच्छी गुणवत्ता वाली सड़ी हुई खाद, बालू, और ऊपरी मिट्टी मिलाकर भरा जाता है।
नारियल की खेती के लिए मिट्टी
नारियल की खेती के लिए रेतीली दोमट, चिकनी दोमट, या लाल दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए, ताकि पौधों को पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा मिल सके। हालांकि, भारी चिकनी मिट्टी और जलभराव वाली भूमि नारियल की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।
नारियल की टॉप किस्मों की जानकारी
1. वेस्ट कोस्ट टॉल (West Coast Tall): यह भारत में सबसे व्यापक रूप से उगाई जाने वाली नारियल किस्म है, जो अच्छे उत्पादन और लम्बे जीवन के लिए जानी जाती है।
2. ईस्ट कोस्ट टॉल (East Coast Tall): यह किस्म विशाखापट्टनम और उसके आस-पास के क्षेत्रों में लोकप्रिय है, जो बड़े फलों और उच्च तेल सामग्री के लिए प्रसिद्ध है।
3. दक्षिण केरल ड्वार्फ (South Kerala Dwarf): यह बौनी किस्म छोटे पेड़ों और ताजे नारियल पानी के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
4. मलेशियन ड्वार्फ (Malayan Dwarf): यह किस्म दक्षिण भारत में लोकप्रिय है, जो ताजे नारियल पानी और बागवानी के लिए उपयुक्त है।
5. लक्षद्वीप ऑरेंज ड्वार्फ (Lakshadweep Orange Dwarf): यह किस्म छोटे पेड़ों और अच्छे गुणवत्ता वाले नारियल पानी के लिए जानी जाती है।
6. चौंगहत ऑरेंज (Chowghat Orange): यह किस्म छोटे पेड़, नारियल पानी और मांस के लिए प्रसिद्ध है।
7. टैली रेड (Talli Red): यह लाल रंग के नारियल और उच्च तेल सामग्री के लिए जानी जाती है।
8. गंगाबोंडम (Gangabondam): यह किस्म मध्यम आकार के पेड़ और उच्च तेल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
9. कर्नाटका ड्वार्फ (Karnataka Dwarf): यह बौनी किस्म अच्छे उत्पादन और गुणवत्ता के लिए जानी जाती है।
10. अंडमान ऑर्डिनरी (Andaman Ordinary): यह किस्म अंडमान द्वीप समूह में उगाई जाती है और अच्छे गुणवत्ता वाले नारियल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
प्रति एकड़ पौधों की संख्या और दुरी
1. नारियल की खेती में प्रति एकड़ 100 से 120 पौधे लगाए जाते हैं।
2. नारियल के पौधों की रोपाई मानसून के आगमन के तुरंत बाद की जाती है, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है।
3. पौधों के बीच की दूरी 5 से 7 मीटर रखी जाती है, ताकि पौधों का सम्पूर्ण विकास और अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके।
खाद और उर्वरक
प्रति एकड़ 15-20 टन गोबर की खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन (N), 320 ग्राम फॉस्फोरस (P2O5), और 1200 ग्राम पोटाश (K2O) की आवश्यकता होती है। खाद और उर्वरक की पहली खुराक रोपाई के समय दी जाती है और उसके बाद 6 महीने के अंतराल पर दी जाती है।
नारियल की फसल में कीटों की समस्या
कीटों की समस्या |
कीटनाशक का नाम |
उपयोग मात्रा |
टविंग बोरर (Twing Borer) |
80 ग्राम प्रति एकड़ |
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लाल मकड़ी (Red Mites) |
150 मिली प्रति एकड़ |
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बीटल्स (Almond Bark Beetle) |
450 ग्राम प्रति एकड़ |
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माहू (Aphid) |
80 मिली प्रति एकड़ |
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तना छेदक (Stem Borer) |
60 मिली प्रति एकड़ |
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सफेद लट (White Grub) |
200 ग्राम प्रति एकड़ |
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दीमक (Termites) |
200 मिली प्रति एकड़ |
नारियल की फसल में रोगों की समस्या
रोगों के नाम |
फफूंदनाशक के नाम |
उपयोग मात्रा |
एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose) |
300 ग्राम प्रति एकड़ |
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जड़ सड़न (Root Rot) |
500 ग्राम प्रति एकड़ ड्रेंचिंग |
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झुलसा रोग (Blight Disease) |
450 मिली प्रति एकड़ |
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स्कैब (Scab Disease) |
400 ग्राम प्रति एकड़ |
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बैक्टीरियल स्पॉट (Bacterial Spot) |
400 ग्राम प्रति एकड़ |
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उखटा रोग (Wilt Disease) |
500 ग्राम प्रति एकड़ |
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रस्ट रोग (Rust Disease) |
300 ग्राम प्रति एकड़ |
नारियल तुड़ाई कटाई और समय
नारियल की फसल की तुड़ाई पौधारोपण के 6-7 साल बाद की जाती है। नारियल की कटाई सालभर में तीन बार की जा सकती है – फरवरी-मार्च, जून-जुलाई, और अक्टूबर-नवंबर में।
नारियल की फसल प्रति एकड़ उत्पादन
प्रति एकड़ 1600 से 2000 नारियल फल प्राप्त होते हैं। एक नारियल के पेड़ से सालाना 80-100 नारियल फल मिलते हैं, जो बाजार की मांग और फसल की स्थिति पर निर्भर करता है।
भारत में नारियल की खेती के लाभ
1. नारियल के फलों की उच्च मांग होती है, जैसे नारियल तेल, नारियल पानी, और नारियल का कोपरा। नारियल विभिन्न उद्योगों में उपयोग होते हैं, जैसे खाद्य, सौंदर्य प्रसाधन, और औषधि।
2. नारियल की खेती से किसानों को नियमित और अच्छी आय होती है, क्योंकि नारियल के विभिन्न उत्पादों की बाजार में हमेशा मांग रहती है।
3. नारियल के पेड़ मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और मिट्टी के क्षरण को रोकने में मदद करते हैं। यह पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
4. नारियल के पेड़ लगभग 60-70 साल तक फल देते हैं, जिससे किसानों को लंबे समय तक स्थिर आय का स्रोत मिलता है।
5. नारियल के पेड़ के नीचे अन्य फसलों को उगाया जा सकता है, जिससे भूमि का बेहतर उपयोग होता है और अतिरिक्त आय का स्रोत मिलता है।
6. नारियल की खेती और इससे संबंधित उद्योगों में बहुत सारे रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, जैसे कि नारियल तेल का उत्पादन, नारियल के छिलके से उत्पाद बनाना आदि।
7. नारियल की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी होती है, और यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, जिससे यह कई क्षेत्रों में संभव और लाभदायक बनती है।
8. भारत से नारियल और नारियल उत्पादों का निर्यात किया जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जित होती है और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान होता है।
9. नारियल और इसके उत्पादों के विभिन्न स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे कि नारियल पानी का हाइड्रेशन में मदद करना, नारियल तेल का त्वचा और बालों के लिए लाभकारी होना आदि। यह लाभ भी इसकी मांग को बढ़ाते हैं।
10. नारियल की खेती के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी का प्रावधान किया जाता है, जिससे किसानों को आर्थिक सहायता मिलती है।
नारियल की खेती के लिए भारत सरकार द्वारा सब्सिडी -
👉नारियल उद्यान विकास योजना (Coconut Garden Development Scheme): यह योजना नए नारियल बागानों की स्थापना के लिए सब्सिडी प्रदान करती है। इस योजना के तहत, प्रति हेक्टेयर 25,000 रुपये तक की सब्सिडी दी जाती है, जिसमें बागानों के रखरखाव और विकास शामिल हैं।
👉हाइब्रिड नारियल पौधों के उत्पादन पर सब्सिडी: हाइब्रिड और अन्य उन्नत किस्मों के नारियल पौधों की खरीद पर सब्सिडी दी जाती है। यह सब्सिडी किसानों को उन्नत तकनीकों का उपयोग करके उच्च उत्पादन वाली किस्मों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है।
👉पुनरोद्धार और पुनर्निर्माण योजना: पुरानी या रोगग्रस्त नारियल की फसलों को बदलने के लिए किसानों को सब्सिडी दी जाती है। इसके तहत प्रति हेक्टेयर 18,000 रुपये तक की सब्सिडी दी जाती है, जिसमें नई पौधों की रोपण और देखभाल शामिल है।
👉कोकोनट पाम इंश्योरेंस स्कीम (CPIS): नारियल की फसल को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बीमा योजना है। इसमें किसानों को बीमा प्रीमियम पर सब्सिडी दी जाती है, जिससे उनकी फसल को नुकसान की स्थिति में मुआवजा मिल सके।
नारियल की खेती से प्रति एकड़ मुनाफा -
नारियल की खेती से प्रति एकड़ प्रॉफिट का अनुमान कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे फसल की स्थिति, बाजार मूल्य, उत्पादन की लागत, और किसानों द्वारा अपनाई गई तकनीकें।
👉प्रति एकड़ उत्पादन: एक एकड़ में लगभग 1600 से 2000 नारियल फल प्राप्त होते हैं। प्रति पेड़ सालाना 80-100 नारियल फल मिल सकते हैं, जो फसल की स्थिति, जलवायु, और देखभाल के स्तर पर निर्भर करता है।
👉बाजार मूल्य: नारियल का बाजार मूल्य अलग-अलग स्थानों और मौसम के अनुसार बदलता रहता है। औसतन, एक नारियल का मूल्य 10-15 रुपये तक हो सकता है। इस हिसाब से, प्रति एकड़ सालाना 1.6 लाख से 3 लाख रुपये तक की आय हो सकती है, अगर बाजार मूल्य और उत्पादन की मात्रा को ध्यान में रखा जाए।
👉लागत: नारियल की खेती की लागत में पौधों की खरीद, खाद और उर्वरक, सिंचाई, और देखभाल शामिल होती है। कुल लागत लगभग 30,000 से 50,000 रुपये प्रति एकड़ तक हो सकती है, हालांकि यह लागत खेती की तकनीक और स्थान पर निर्भर करती है।
👉प्रॉफिट: लागत घटाने के बाद, प्रति एकड़ शुद्ध प्रॉफिट लगभग 1.3 लाख से 2.5 लाख रुपये तक हो सकता है। यदि बाजार मूल्य अधिक हो, तो प्रॉफिट और बढ़ सकता है।
सारांश -
नारियल की खेती एक लाभदायक और ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है, जो सही मौसम, जलवायु, और उर्वरक प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार देती है।
किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उचित खेती तकनीक, और कीट एवं रोग प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए, ताकि अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. नारियल की खेती किन क्षेत्रों में होती है?
उत्तर - भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश में नारियल की खेती प्रमुख रूप से होती है।
2. नारियल की खेती का सबसे उपयुक्त समय क्या है?
उत्तर - मानसून की शुरुआत से पहले या तुरंत बाद नारियल की खेती का समय सबसे उपयुक्त होता है।
3. नारियल की खेती के लिए कौन-सी जलवायु उपयुक्त होती है?
उत्तर - उष्णकटिबंधीय और आर्द्र जलवायु नारियल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
4. नारियल की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी चाहिए?
उत्तर - रेतीली दोमट, चिकनी दोमट, और लाल दोमट मिट्टी नारियल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं।
5. नारियल की खेती में प्रति एकड़ कितने पौधे लगाए जाते हैं?
उत्तर - नारियल की खेती में प्रति एकड़ 100 से 120 पौधे लगाए जाते हैं।
6. नारियल की खेती के लिए आवश्यक उर्वरक कौन-कौन से हैं?
उत्तर - प्रति एकड़ 15-20 टन गोबर की खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन, 320 ग्राम फॉस्फोरस, और 1200 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
7. नारियल की फसल में कौन-कौन से प्रमुख कीट होते हैं?
उत्तर - प्रमुख कीटों में टविंग बोरर, लाल मकड़ी, बीटल्स, माहू, तना छेदक, और सफेद लट शामिल हैं।
8. नारियल की फसल में कौन-कौन से रोग होते हैं?
उत्तर - एन्थ्रेक्नोज, जड़ सड़न, झुलसा रोग, स्कैब, बैक्टीरियल स्पॉट, उखटा रोग, और रस्ट रोग नारियल की फसल में प्रमुख हैं।
9. नारियल की तुड़ाई कब की जाती है?
उत्तर - नारियल की तुड़ाई पौधारोपण के 6-7 साल बाद होती है, और यह साल में तीन बार की जा सकती है।
10. नारियल की खेती से प्रति एकड़ कितना उत्पादन होता है?
उत्तर - प्रति एकड़ 1600 से 2000 नारियल फल प्राप्त होते हैं।
लेखक
BharatAgri Krushi Doctor