किसान भाइयों नमस्कार, स्वागत है BharatAgri Krushi Dukan वेबसाइट पर। इस ब्लॉग में, हम हल्दी की फसल में प्रकंद सड़न रोग (rhizome rot of turmeric) की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे, जिसमें इसके कारण, पहचान, और नियंत्रण के उपाय शामिल हैं।
हल्दी एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है जिसका उपयोग खाद्य में किया जाता है, लेकिन इसके अलावा यह औषधियों की तैयारी में भी उपयोग होती है। हल्दी का उत्पादन कंद के रूप में होता है। भारतीय हिन्दू समाज में हल्दी का धार्मिक महत्व है और इसका उपयोग शादी विवाह की रस्मों में भी किया जाता है। हल्दी के कंद में कुर्कमिन और एलियोरोजिन होता है जो उपयोगी गुणों से भरपूर हैं। इसमें प्रोटीन, वसा, पानी, कार्बोहाइड्रेट, रेशा, और खनिज लवण भी होते हैं। हल्दी आयुर्वेदिक उपचार में भी महत्वपूर्ण है और इसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में होता है। दूध के साथ हल्दी का सेवन चोटों को ठीक करने में मदद कर सकता है।
भारत दुनिया में हल्दी के प्रमुख उत्पादक है और हल्दी का निर्यात भी करता है। इसका उत्पादन पश्चिम बंगाल, केरल, मेघालय, तमिलनाडु, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र, और कर्नाटक राज्यों में मुख्य रूप से होता है, और उत्तर प्रदेश के बाराबंकी और बहराइच जिलों में भी इसकी खेती की जाती है।
हल्दी में प्रकंद/जड़ सड़न रोग के कारण | Turmeric rhizome rot -
प्रकंद की सड़न: हल्दी की खेती में पाइथियम ग्रैमिनीकोलम फफूंद के कारण यह बीमारी आती है, जिससे हल्दी के पौधों को नुकसान होता है और प्रकंद का प्रसार होता है। इसके परिणामस्वरूप, हल्दी के पौधों पर सफेद दाग बन जाते हैं और उनकी वृद्धि में रुकावट होती है।
हल्दी में प्रकंद/जड़ सड़न रोग के लक्षण | Symtopmps of turmeric rhizome rot -
1. पत्तियों का रंग परिवर्तन: यह रोग सबसे पहले पत्तियों पर प्रकट होता है, जिससे पत्तियों का रंग हल्का फीका हो जाता है।
2. पत्तियों का पीलापन: पत्तियों की नोंक से यह पीलापन शुरू होता है और धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाता है।
3. पत्तियों का सूखना : इस रोग के कारण पत्तियां सूख जाती हैं और पौधा कमजोर हो जाता है।
4. भूरा रंग का पौधा: पौधा जमीन की सतह के पास भूरे रंग का हो जाता है, और छूने पर पिलपिलापन का अनुभव होता है।
5. जड़ सड़न: मृदु विगलन जड़संधि से शुरू होकर प्रकंद तक फैलता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं।
6. प्रकंद का सड़ना : कंदों के ऊपर का छिलका स्वस्थ दिखता है, लेकिन अंदर का गूदा सड़ जाता है।
7. प्रकंद/गाठों में छेद: सूत्रकृमि, राइजोम मैगट, कूरमुला कीट आदि इस रोग की उग्रता को बढ़ाते हैं, क्योंकि वे गाठों में छेद करके फफूंद के प्रवेश को सुगम बना देते हैं, जिससे रोग अधिक फैलता है।
हल्दी में प्रकंद/जड़ सड़न रोग नियंत्रण | Control measures for rhizome rot of turmeric -
1. खेत की अच्छी तरह से तैयारी: खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद फफूंद को नष्ट करने में मदद मिल सकती है।
2. भूमि शोधन: खेत को तैयार करते समय, 40 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1.5 से 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी जैसे जैविक खादों का प्रयोग करें। यह पौधों की स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
3. प्रकंद/बीज प्रक्रिया: बुआई से पहले, प्रति किलोग्राम प्रकंद/बीज को 2 ग्राम धानुका विटावेक्स जैसे बीज उपचारक से उपचारित करें। यह प्रकंद/बीज के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
4. संक्रमित पौधों का प्रबंधन: खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखने पर, संक्रमित पौधों को ध्यानपूर्वक खेत से बाहर निकालकर नष्ट करें।
5. जैविक रोपण: फसल के लक्षणों के प्रसार को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी को 2 मिली/प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल की पौधों पर ड्रेंचिंग करें। यह बीजों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और रोग के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है।
हल्दी में प्रकंद/जड़ सड़न रोग नियंत्रण के बेस्ट फफूंदनाशी | Fungicide for rhizome rot of turmeric -
1. धानुका धानुस्टिन फफूंदनाशी (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी): 1 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इस मिश्रण को ड्रेंचिंग या ड्रिप से पौधों पर लागू करें।
2. यूपीएल साफ (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP): 2 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इस मिश्रण को ड्रेंचिंग या ड्रिप से पौधों पर लागू करें।
3. धानुका कोनिका फफूंदनाशी (कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी): 2 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इस मिश्रण को ड्रेंचिंग या ड्रिप से पौधों पर लागू करें।
4. सिंजेंटा रिडोमिल गोल्ड फफूंदनाशी (मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यूपी): 2 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इस मिश्रण को ड्रेंचिंग या ड्रिप से पौधों पर लागू करें।
5. बायोस्टैड रोको फफूंदनाशी (थियोफानेट मिथाइल 75% WP): 2 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इस मिश्रण को ड्रेंचिंग या ड्रिप से पौधों पर लागू करें।
6. धानुका ज़ेनेट फफूंदनाशी (थियोफानेट मिथाइल 44.8% + कासुगामाइसिन 2.6% एससी): 2.5 मिली को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इस मिश्रण को ड्रेंचिंग या ड्रिप से पौधों पर लागू करें।
Conclusion | सारांश -
हल्दी की फसल में प्रकंद सड़न रोग (rhizome rot of turmeric) को प्रकट करने और नियंत्रित करने के लिए आपको सही जानकारी और उपायों की आवश्यकता होती है। इस ब्लॉग में हमने इस रोग के कारण, पहचान, और नियंत्रण के उपायों के बारे में विस्तार से बताया है। हमने बताया कि इस बीमारी के लक्षण क्या होते हैं, और उसका नियंत्रण कैसे किया जा सकता है, साथ ही उपयुक्त फफूंदनाशी के बारे में भी जानकारी प्रदान की है। इससे किसानों को इस बीमारी से निपटने में मदद मिलेगी और हल्दी की फसल को सुरक्षित रखने में सहायक साबित होगा।
FAQ | बार - बार पूछे जाने वाले सवाल -
1. प्रकंद सड़न रोग क्या है?
प्रकंद सड़न रोग हल्दी की फसल में पाइथियम ग्रैमिनीकोलम फफूंद के कारण होता है, जिससे हल्दी के पौधे गिरते हैं और प्रकंद की सड़न शुरू होती है।
2. प्रकंद सड़न रोग के लक्षण क्या होते हैं?
इस रोग में पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है, फिर पत्तियों का सूखना शुरू होता है, और धीरे-धीरे पूरे पौधे को प्रकंद आक्रमण करती है।
3. प्रकंद सड़न रोग से कैसे बचा जा सकता है?
प्रकंद सड़न रोग से बचाव के लिए स्वस्थ बुआई, बीज प्रक्रिया, जैविक रोपण, और बीजों के उपचार का पालन करें। समय पर जानकारी प्राप्त करके उपयुक्त रोग प्रबंधन के उपायों करें।
4. प्रकंद सड़न रोग का उपचार क्या है?
प्रकंद सड़न रोग के उपचार के लिए उपयुक्त फफूंदनाशी और जैविक फफूंदनाशी का प्रयोग किया जाना चाहियें।
5. प्रकंद सड़न रोग से बचाव के उपाय क्या हैं?
प्रकंद सड़न रोग से बचाव के उपाय में स्वस्थ बुआई, बुआई से पहले बीजों का उपचार, बियोकंट्रोल एजेंट्स का उपयोग, और जैविक खादों का प्रयोग करें।
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लेखक
भारतअॅग्री कृषि डॉक्टर