तरबूज की खेती - BA Blog

तरबूज की खेती आधुनिक तरीके से करें, 30 टन/ एकड़ तक उत्पादन पाएं!

नमस्कार किसान भाइयो आज के लेख में हम आपको तरबूज की खेती के बारे में तथा तरबूज से होने वाले फायदे के बारे में बताने वाले है -

तरबूज की खेती से सम्बंधित कुछ रोचक जानकारियाँ 

किसान भाइयो भाइयो तरबूज की खेती पुरे विश्व में की जाती है,अगर हम भारत की बात करे तो भारत विश्व में तरबूज के उत्पादन में तीसरा बड़ा देश है जो तरबूज का ज्यादा उत्पादन करता है,अब हम भारत की बात करे तो उत्तर प्रदेश,कर्नाटक,पंजाब,हरियाना,राजस्थान,मध्य प्रदेश,आँध्रप्रदेश,महाराष्ट्र,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में तरबूज की खेती अच्छे पैमाने पर की जाती है। तरबूज में अच्छी मात्रा में विटामिन A & C भरपूर मात्रा में पाया जाता जो स्वस्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। 

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तरबूज की खेती कैसे करें | Tarbuj Ki Kheti Kaise Karen

तरबूज की खेती आमतौर पर जायद के मौसम की मुख्य फसल है,लेकिन तरबूज की खेती आमतौर पर जायद के मौसम के में मुख्य रूप से की जाती है ,ज्यादातर किसान तरबूज की खेती फरवरी - मार्च में करते है। लेकिन यदि किसान के पास पॉलीहाउस लो-टनल, ग्रीन हाउस आदि की सुविधा हो तो सर्दियों में भी कर सकते है। सर्दियों में तरबूज के अंकुरण की समस्या देखने को आती है लेकिन फिर भी बहुत सारे किसान पौध तैयार करके सर्दियों में रोपाई करते है। 

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भारत में जैसे ही गर्मियों का मौसम आता है तो बाजार में तरबूज की मांग बढ़ती जाती है। जो किसान तरबूज की खेती करते है ओ अच्छा मुनाफा भी कमाते है क्योकि कम समय,कम पानी,कम उर्वरक की मात्रा में ही तरबूज की सफल खेती कर सकते है। लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान रोगो और कीटो पर रखना पड़ता है। 

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तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी | Suitable climate and soil for watermelon cultivation in Hindi

तरबूज की खेती के लिए गर्म और औसत आर्दता वाले क्षेत्र अच्छे माने जाते है,लेकिन बीज अंकुरण और पौधे की अच्छी बढ़वार के लिए 25 से 32 सेल्सियस तापमान अच्छा माना जाता है। वही अगर मिटटी की बात करे तो दोमट भूमि और रेतीली दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है,इसकी खेती नदियों के खाली स्थानों पर अच्छे तरीके से कर सकते है। जिन मिट्टी का पीएचमान 6.5 से 7.0 के बीच होता है उन भूमियो पर खेती कर सकते है।

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तरबूज की उन्नत किस्में | Best Varieties of Watermelon in Hindi

अगर तरबूज की किस्मो की बात करे तो बहुत सारी किस्मे बाजार में उपलब्ध है लेकिन कुछ किस्मो के बारे में नीचे दिया गया है। इन किस्मो का चुनाव हम अच्छे उत्पादन के लिए उपयोग कर सकते है। आइये कुछ किस्मो के बारे में चर्चा करते है -

  • Kalash seeds - MELODY F1
  • Syngenta - AUGUSTA
  • Syngenta - DRAGON KING
  • Syngenta - SUGAR QUEEN
  • Namdhari - NS 295
  • Nunhems - ASTHA
  • Nunhems - Maxx
  • Sagar Biotech - Sagar King
  • Sagar Biotech - Sagar Vijay
  • Sagar Biotech - Sagar King Plus

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बीज की मात्रा प्रति एकड़ और बीज उपचार | Seed quantity per acre and seed treatment 

अगर तरबूज के बीज दर की बात करे तो अगर हम हाइब्रिड किस्मो की बुवाई करते है तो एक एकड़ में बुवाई के लिए 300 ग्राम लेकर 350 ग्राम बीज तक की आवस्यकता पड़ती है,लेकिन अगर हम बीज की संख्या की बात करे तो 6000 बीज की जरुरत पड़ती है एक एकड़ की बुवाई के लिए उपयोगी होता है, हम जो बीज बाजार से लाते उन बीजो का उपचार करना बहुत जरुरी होता मृदा जनित व बीज जनित रोगो और कीटो से सुरक्षा पाने के लिए अब हम उन रसायन की बात करते है जिनका उपयोग हम बीजोपचार के लिए उपयोग कर सकते है। 

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रासायनिक बीज उपचार | Chemical seed treatment in Hindi

सबसे पहले बाविस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% WP) 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करेंगे फिर उसके बाद कॉन्फीडोर (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL) 1 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके कुछ समय के लिए बीज को छाँव में सुखाकर बुवाई के लिए उपयोग कर सकते है। 

जैविक बीज उपचार | Organic Seed Treatment 

जो किसान जैविक खेती करते है ओ किसान ट्राइकोडर्मा विरिडी 2.5 मिली प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करेंगे फिर उसके बाद स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 2.5 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके कुछ समय के लिए बीज को छाँव में सुखाकर बुवाई के लिए उपयोग कर सकते है। 

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खेत की तैयारी और बुवाई का समय | Field preparation and sowing time

बुवाई की बात करे तो उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुआई फरवरी में की जाती है, तो वहीं नदियों के किनारों पर खेती की बुआई नवम्बर से मार्च तक और पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल में बुआई की जाती है।

अब हम जानते है की खेत की तैयारी किस तरीके से करना चाहिए सबसे पहले जब खेत खाली हो जाता है तो उस समय मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके खेत को खुला छोड़ देना चाहिए ताकि हवा का संचार अच्छे से हो सके फिर उस खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद कम से कम 2 टन उसमे 2 लीटर डिकम्पोस्टिंग बैक्टीरिया को मिलाकर मिटटी में बिखेर देना चाहिए फिर कल्टीवेटर या रोटावेटर से मिटटी की जुताई करके छोड़ देना चाहिए।

तरबूज की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन Nutrient Management in Watermelon in Hindi

अब हम उर्वरक प्रबंधन की बात करे तो तरबूज की खेती के एक सीजन में एनपीके 40:20:20 के अनुपात में प्रति एकड़.के लिए आवस्यकता पड़ती है। अगर बुवाई के समय की बात करे तो यूरिया- 45 किग्रा,सिंगल सुपर फॉस्फेट- 105 किग्रा, म्यूरेट ऑफ पोटाश - 35 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिए। यदि मिटटी में निमेटोड,दीमक,सफ़ेद लट की समस्या आती हो तो नीम की खली 100 किलोग्राम और कार्बोफ्यूरान 3% सीजी को 5 किलोग्राम के हिसाब से प्रति एकड़ के हिसाब से मिक्स करना चाहिए। 

तरबूज की बुआई की विधि | Watermelon sowing method in Hindi

तरबूज की बुवाई की दुरी तरबूज की किस्म और भूमि की उर्वरता के आधार पर तय किया जाता है। तरबूज की बुआई मेड़ों पर लगभग 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर और 40 से 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाकर करें। इसके बाद नालियों के दोनों किनारों पर लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीज को बोना चाहिए जब बीज अंकुरित हो जाये तो लगभग 10-15 दिन बाद एक जगह पर 1 से 2 स्वस्थ पौधों को छोड़कर के पौधे को खेत से निकाल देना उचित होता है।

तरबूज की फसल में सिंचाई प्रबंधन | Irrigation Management in Watermelon in Hindi 

  1. तरबूज की खेती में पहली सिंचाई बुआई के लगभग 10-15 दिन के बाद करनी चाहिए। 
  2. नदियों के कछारों में जो किसान खेती करते है तो वहाँ  सिंचाई की बहुत कम आवश्यकता नहीं पड़ती है,क्योंकि पौधों की जड़ें बालू के नीचे से पानी को सोख लेता है।
  3. अगर किसान बहाव के माध्यम से फसल को पानी देता है तो 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिचाई कर सकते है। 
  4. अब जिन किसान के पास ड्रिप सुविधा है तो ओ किसान ड्रिप के अनुसार 1 से 2 दिनों के अंतराल पर सिचाई कर सकते है।
  5. यदि फसल परिपक्वता की अवस्था पर आ गयी हो तो सिचाई के अंतराल को बढ़ाया जा सकता है। (फसल आवस्यकतानुसार)

तरबूज के फलों की तुड़ाई | Harvesting of watermelon in Hindi

फलों की तुड़ाई तब करनी चाहिए जब यह टैप करने पर मंद ध्वनि उत्पन्न करता है या जमीन के स्तर पर फल की सतह हल्के पीले रंग की दिखती देने लगती है,तो उस समय फलो की तुड़ाई कर लेनी चाहिए।

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