castor varieties

castor varieties: अरंडी की उन्नत किस्मों के नाम और जानकारी

किसान भाइयों नमस्कार, स्वागत है BharatAgri Krushi Dukan वेबसाइट पर।  इस ब्लॉग में, हम अरंडी की खेती के महत्व, उपयोग, खेती के तरीके, और उन्नत किस्मों castor varieties के बारे में जानेंगे। इसके साथ ही, हम आपको बताएंगे कि अरंडी की फसल को सफलतापूर्वक कैसे उगाया जा सकता है और इससे कैसे उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

अरंडी भारत की एक महत्वपूर्ण और व्यापारिक तिलहनी फसल है, जिसका क्षेत्रफल और उत्पादन दुनिया में पहले स्थान पर है। भारत दुनिया के अरंडी के तेल के विश्व बाजार में लगभग 87.42% हिस्सेदारी रखता है। अरंडी के तेल का ज्यादा हिस्सा भारतीय किस्म का होता है, जिसमें 48% तेल होता है। इसके उत्पादन के लिए गर्म और नम जलवायु अत्यंत उपयुक्त है, जो भारत में विशेषत: उपलब्ध है।

अरंडी के बीजों से प्राप्त तेल का औद्योगिक महत्व उच्च है। इस तेल का व्यावसायिक उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में होता है, जैसे कि सरफेस कोटिंग्स, टेलीकॉम इंजीनियरिंग प्लास्टिक, फार्मा, रबर केमिकल्स, नायलॉन, साबुन, हाइड्रोलिक तरल पदार्थ, पेंट और पॉलिमर उत्पादन में। इसके अलावा, अरंडी के उप-उत्पाद का कृषि में जैविक खाद के रूप में भी उपयोग होता है।

इसका मुख्य उत्पादन भारत के गुजरात, राजस्थान, और आंध्र प्रदेश में होता है, लेकिन गुजरात एकमात्र राज्य है जो कुल अरंडी उत्पादन में 81.44% हिस्सेदारी रखता है।


अरंडी की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी | Climate and soil for castor cultivation -

1. तापमान: अरंडी की खेती करने के लिए उचित तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। यह फसल के पौधों के विकास और बीज के पकने के लिए महत्वपूर्ण है।

2. मिट्टी: अरंडी की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए।

3. सिंचाई: अरंडी की फसल के पौधे गहरी जड़ों वाले होते हैं और ये सूखा सहन कर सकते हैं, इसलिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

4. जल निकासी: अरंडी की खेती के लिए खेत में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि पानी जमा नहीं होता और फसल के लिए उपयुक्त नमी बनी रहे।


अरंडी की खेती के लिए खेत की तैयारी | Field preparation for castor cultivation -

1. हल और जुताई: खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, क्योंकि अरंडी के पौधे गहरी जड़ों तक जाते हैं। इसके बाद, ट्रैक्टर से मिट्टी पलटने वाले हल की मदद से खेत को तैयार करें। इसके बाद, पाटा लगाकर खेत को समतल करें।

2. जल निकासी: खेत में उपयुक्त जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि पानी जमा नहीं होता और फसल के लिए उपयुक्त नमी बनी रहे।

3. जल निकासी के बाद, खेत को एक सप्ताह तक खाली रखना चाहिए, ताकि जमीन पर धूप का प्रभाव हो सके और कीटों और रोगों का प्राकृतिक नियंत्रण हो सके।


अरंडी की उन्नत किस्में | Castor Varieties -

1. जी सी एच 4 (GC-H4): जी सी एच 4 किस्म उत्तर भारतीय क्षेत्रों के लिए अच्छी है। इसकी बुवाई के करीब 50-60 दिनों के बाद पौधों में फूल आने लगते हैं। पौधों की लंबाई लगभग 120 से 170 सेंटीमीटर होती है। इसके बीज में 48% तेल होता है।

2. आर एच सी 1 (RC-H1): यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उपयुक्त है और यह लवणीय और क्षारीय क्षेत्रों में भी अच्छी पैदावार देता है। बीज में तेल की मात्रा 49.3% होती है।

3. क्रांति (Kranti): इस किस्म का फसल बीज में 50 प्रतिशत तेल होता है और फसल को तैयार होने में 130 से 150 दिन लगते हैं।

4. ज्वाला 48-1 (Jwala 48-1): यह बिना कांटे वाली किस्म है और बीज में 48.5 प्रतिशत तेल होता है। इसका फसल लगभग 140 से 160 दिनों में पूरी तरह तैयार हो जाता है।

5. INDO-US SHIVA - अनुसंधान हाइब्रिड अरंडी के बीज की पौधों की ऊंचाई 215 से 250 सेमी होती है और बीज की मात्रा 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। 50% फ्लॉवरिंग तक का समय 58 से 65 दिन और पूरी पैदावार के लिए 185 से 210 दिन होते हैं, इसके बीज का रंग गहरा भूरा होता है और तेल की मात्रा 48 से 49 प्रतिशत होती है।

6. INDO-US RAJMOTI - अनुसंधान हाइब्रिड अरंडी के बीज की पौधों की ऊंचाई 110 से 115 सेमी होती है और बीज की मात्रा 4.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। 50% फ्लॉवरिंग तक का समय 60 से 65 दिन और पूरी पैदावार के लिए 200 से 210 दिन होते हैं, इसके बीज का रंग हल्का भूरा होता है और तेल की मात्रा 49 से 50 प्रतिशत होती है।

7. Jaigrow Mahashiva -  हाइब्रिड अरंडी के बीज एक उत्कृष्ट प्रकार है, जो सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के लिए उत्तम है। पौधों का रंग लाल होता है, पौधा द्विबीजपत्रक होता है और सुकरा रोग के प्रति प्रतिरोधी होता है। पौधे के निचले हिस्से से शाखाएं निकलती हैं और यह शाखाएं अधिक दिखाई देती हैं।  सिंचित क्षेत्र में पौधों के बीच की दूरी 7 फीट X 4 फीट होनी चाहिए और असिंचित क्षेत्र में 4 फीट X 4 फीट की दूरी रखनी चाहिए। 

8. KSF Goldi 21 - हाइब्रिड अरंडी के बीज सबसे पॉपुलर और पावरफुल बीजों में से एक है। प्रति एकड़ आवश्यकता: 1 किलो और उत्पादन की अवधि: 170 से 180 दिन और प्रति एकड़ उत्पादन: 1400 किलोग्राम से 1600 किलोग्राम तथा इसकी बुआई का समय: जुलाई से सितंबर तक होता हैं।  

9. Remik-7777 Hybrid - अरंडी के बीज इसकी परिपक्वता अवधि 160 दिन की होती हैं, यह सिंचित और असिंचित दोनों के लिए बेस्ट है, इसमें ज्यादा वजन वाले लंबे स्पाइकलेट और अधिक उपशाखाएँ होती हैं।  यह किस्म विल्ट और रूट रॉट रोग के प्रति सहिष्णुता हैं।  


अरंडी की बुवाई | Castor Sowing Time -

1. बुआई तिथि: अरंडी की फसल की बुआई जुलाई और अगस्त के महीनों में की जाती है, जब मौसम अनुकूल होता है।

2. बीज की मात्रा: प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम अरंडी के बीजों की आवश्यकता होती है।

3. बीज की बुआई: बीज को हाथ से या सीड ड्रिल का उपयोग करके बुआई की जा सकती है। प्रति हेक्टेयर पानी की पुर्नव्यवस्था वाले क्षेत्रों में अरंडी की फसल की बुआई करते समय, एक मीटर या सवा मीटर की दूरी पर बीज की बुआई की जा सकती है, जबकि सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती है, तो दूरी कम की जा सकती है।


अरंडी की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन | Fertilizer management in castor crop -

1. खाद और उर्वरक: अरंडी की फसल के लिए सही मात्रा में खाद और उर्वरक का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। यह फसल के उत्पादन और बीज में तेल की मात्रा को बढ़ा सकता है।

2. खाद प्रबंधन: अरंडी की खेती में जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था है, वहां 80 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर का उर्वरक उपयोग किया जा सकता है। जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, वहां 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर का उर्वरक उपयोग किया जा सकता है।

3. उर्वरक प्रबंधन: खेत की तैयारी के समय आधा नाइट्रोजन और फास्फोरस को प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए, और शेष भाग फसल की बुवाई के 30 से 35 दिन के बाद सिंचाई के समय खड़ी फसल पर डालना उपयुक्त होता है।


अरंडी की फसल में सिंचाई | Irrigation in castor crop -

1. बुआई के समय: अरंडी की बुआई जुलाई और अगस्त में होती है, जब वर्षा की संभावना होती है. बुआई करते समय प्रत्येक 15 दिन के अंतराल में सिंचाई की जा सकती है, अगर वर्षा नहीं होती है तो।

2. बुआई के 30-35 दिन बाद: बुआई के 30-35 दिन बाद, खड़ी फसल पर नाइट्रोजन और फास्फोरस का उर्वरक डाला जा सकता है।


अरंडी की बीज का मूल्य | Castor hybrid seeds price -

बीज की मूल्य जानने के लिए, आपको अपने स्थानीय कृषि विभाग या कृषि उपकरण विभाग से संपर्क करके जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, या अपने स्थानीय कृषि उपकरण विक्रेता से संपर्क कर सकते हैं। वे आपको वर्तमान बीज की मूल्य और उपलब्धता की जानकारी प्रदान कर सकते हैं। ध्यान दें कि बीज की मूल्य विभिन्न क्षेत्रों और समय के हिसाब से बदल सकता है, और इसलिए आपको स्थानीय बाजार और कृषि अधिकारियों की सलाह लेनी चाहिए।


Conclusion | सारांश -  

इस ब्लॉग में हमने अरंडी की खेती के महत्व, उपयोग, खेती के तरीके, और उन्नत किस्मों (castor varieties) के बारे में जानकारी प्रदान की है। अरंडी भारत के लिए महत्वपूर्ण फसल है और इसके तेल का उद्योगिक महत्व भी बड़ा है। हमने यहां इसकी उत्पादन प्रक्रिया, खेती के लिए मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता, उच्च उत्पादन वाली किस्में, बीज की बुआई, और उर्वरक प्रबंधन के तरीके को बताया है।


FAQ | बार - बार पूछे जाने वाले सवाल -  

1. अरंडी का सबसे अच्छा बीज कौन सा है?

अरंडी के बीजों में 'KSF Goldi 21' एक प्रमुख और उत्कृष्ट विकल्प है, जिसका उत्पादन में उच्च मात्रा और पॉपुलरिटी है।

2. आप अरंडी कैसे उगाते हैं?

अरंडी को बुआई करते समय खेत में बीज बोए जाते हैं और उसके बाद सिंचाई और उर्वरक की देखभाल करनी चाहिए ताकि यह सफलतापूर्वक उग सके।

3. अरंडी का पौधा कहां उगता है?

अरंडी का पौधा खेत में उगता है। खेती के लिए उचित तैयारी की जाने वाली भूमि पर अरंडी के बीज बोए जाते हैं, और वहां पर पौधे उगते हैं जिनसे फिर अरंडी की फसल पैदा होती है।

4. अरंडी किस मौसम में बढ़ती है?

अरंडी की फसल गर्म और सूखे के मौसम में अच्छी तरह से बढ़ती है। यह फसल गर्मियों के महीनों में, जैसे कि जुलाई से सितंबर, प्रमुखतः बढ़ती है, जब तापमान और दिन की लम्बाई उच्च होती हैं। इसके लिए गर्म और नम जलवायु अत्यंत उपयुक्त होता है, जैसे कि भारत में विशेषतः उपलब्ध होता है।

5. अरंडी की फलियाँ किसके लिए अच्छी होती हैं?

अरंडी की फलियाँ तेल के उत्पादन के लिए अच्छी होती हैं और इसका तेल विभिन्न उद्योगों, जैसे कि सरफेस कोटिंग्स, फार्मा, साबुन, नायलॉन, और पॉलिमर उत्पादन में उपयोग होता है।


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भारतअ‍ॅग्री कृषि डॉक्टर


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