किसान भाइयों नमस्कार, स्वागत है BharatAgri Krushi Dukan वेबसाइट पर। इस ब्लॉग में, हम सरसों की खेती (sarso ki kheti) के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी के बारे में बात करेंगे, खेत की तैयारी, बीज की मात्रा, उपयुक्त किस्में, सिंचाई, खाद और उर्वरक का उपयोग, खरपतवार का नियंत्रण, फसल की कटाई, और भंडारण की जरूरी जानकारी प्रदान करेंगे। सरसों की खेती से संबंधित (sarson ki kheti kaise karen) महत्वपूर्ण नुकसानों के बारे में भी जानकारी मिलेगी।
सरसों भारतीय रसोई में एक महत्वपूर्ण खाद्य उपयोग का हिस्सा है, और यह भारत के विभिन्न राज्यों में उगाई जाती है। सरसों की खेती की विशेषता यह है कि यह सिंचाई के साथ-साथ बिना सिंचाई के भी की जा सकती है, जिससे किसानों को विभिन्न प्राकृतिक परिस्थितियों में उपज मिलती है। सरसों का तेल न केवल खाद्य तेल के रूप में प्रयोग होता है, बल्कि यह औषधि और उद्योगों में भी महत्वपूर्ण है।
भारत में सरसों की खेती के बाद सोयाबीन और मक्का विश्व में महत्वपूर्ण फसलें हैं। सरसों के पत्ते को सब्जियों में उपयोग किया जाता है और सरसों की खली दुधारू पशुओं के लिए एक महत्वपूर्ण चारा स्रोत होती है। सरसों के तेल का उपयोग भारतीय व्यंजनों, खाद्य वस्त्रों की मलिनता और औषधियों में किया जाता है, जिससे यह एक बहुउद्देशीय फसल है।
किसानों को सरसों की खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है, और सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी बढ़ा दिया है, जिससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ हो रहा है। सरसों की मांग घरेलू बाजारों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बढ़ रही है, जो किसानों को एक अच्छे भविष्य की ओर अग्रसर कर रहा है।
जलवायु और मिट्टी | Climate and soil -
सरसों भारत की मुख्य रबी फसलों में से एक है, और इसकी बुआई का समय (sarso ki kheti ka time) मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक होता है। सरसों की खेती के लिए ठंडी और सुखी मौसम की आवश्यकता होती है, जिससे यह फसल सही ढंग से उग सके। उम्मीद की जाती है कि तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहना चाहिए।
सरसों की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी समतल और अच्छी जल निकासी वाली होती है। बलुई दोमट मिट्टी सरसों के लिए अच्छी मानी जाती है, लेकिन यह न सिर्फ लवणीय हो, बल्कि बंजर भूमि नहीं होनी चाहिए।
खेत की तैयारी | Field preparation -
सरसों की खेती (sarson ki fasal) के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। पहले खेत की धरती को मिट्टी पलटने वाले हल से जोतना चाहिए। इसके बाद दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर की मदद से करनी चाहिए। जुताई करने के बाद खेत में नमी बनाए रखने और समतलता बनाए रखने के लिए पाटा लगाना आवश्यक है। पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय और पानी की बचत होती है।
बीज की मात्रा | Seed rate for sarso ki kheti -
जिन खेतों में सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं, वहाँ प्रति एकड़ के लिए 2 किलोग्राम सरसों के बीज का प्रयोग करना चाहिए। जबकि जिन खेतों में सिंचाई के लिए साधन कम हैं, वहां प्रति एकड़ के लिए 3 किलोग्राम सरसों के बीज का प्रयोग करना चाहिए। बीज की मात्रा फसल की किस्म पर निर्भर करती है, जैसे यदि फसल की अवधि अधिक है तो बीज की मात्रा कम होगी, और यदि फसल की अवधि कम है तो बीज की मात्रा अधिक होगी।
सरसों का ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्म | Mustard Hybrid Seed Buy Online -
सरसों की खेती के लिए उपयुक्त किस्मों का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालता है। ज्यादातर किस्में उच्च उत्पादन, अच्छी परिपक्वता, रोग प्रतिरोधिता, और अधिक तेल प्रतिशत प्रदान करती हैं। किसानों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे उनकी क्षेत्रीय मांगों, मौसम और जल संसाधनों के आधार पर सही किस्म का चयन करें ताकि उन्हें बेहतर प्रौद्योगिकियों के साथ अच्छा मुनाफा हो सके।
1. PIONEER 45S46 MUSTARD SEEDS: - Pioneer 45S46 सरसों की एक महत्वपूर्ण संकर प्रजाति है जो उच्च तेल प्रतिशत और मध्यम परिपक्वता प्रदान करती है। यह 90 से 110 दिनों में पूरी तरह से परिपक्व हो जाती है और विभिन्न रोगों और वायरसों के प्रति सहनशीलता में श्रेष्ठ है। इसका विशेष लाभ यह है कि इसे उच्चतम उत्पादन क्षमता वाले क्षेत्रों में बोए जा सकता है।
2. Pioneer 45s47 Mustard Seed: - Pioneer 45s47 सरसों की किस्म ज्यादा फुटाव वाली है, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। इसकी फसल अवधि 122-125 दिन है और इसे अक्टूबर से नवंबर के बीच बोए जा सकता है। यह किस्म 43.50% तक तेल प्रदान करती है, जिससे यह उत्कृष्ट तेल की गुणवत्ता प्रदान करती है और विभिन्न परिस्थितियों में भी अच्छी प्रदर्शन करती है।
3. Advanta 414 Mustard Seed: - Advanta 414 सरसों की किस्म शक्तिशाली रोग प्रतिरोधी है जो सरसों की पौधरोग बीमारियों से बचाव कर सकती है। इसकी बुआई अक्टूबर से नवंबर के बीच में की जा सकती है और इसे ड्रिलिंग या प्रसारण की जा सकती है।
4. Shriram 1666 HYB Mustard Seed: - Shriram 1666 HYB सरसों की किस्म ज्यादा फुटाव वाली है और इसकी फसल की अवधि 128-130 दिन है। इसे अक्टूबर से नवंबर के बीच में बोए जा सकता है और यह शक्तिशाली रोग प्रतिरोधी होने के साथ-साथ अधिक तेल प्रतिशत प्रदान करती है।
5. Crystal Hybrid Mustard Seeds 5222: - Crystal Hybrid Mustard Seeds 5222 सरसों की बुआई अक्टूबर से नवंबर के बीच में की जा सकती है और इसे ड्रिलिंग या प्रसारण की जा सकती है। इसकी दूरी पंक्ति से पंक्ति तक 30-45 सेंटीमीटर है, जबकि पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर है। इसमें तेल सामग्री की मात्रा 41-42% तक होती है।
सरसों की खेती के लिए सिंचाई | Irrigation for sarso ki kheti -
सरसों की फसल के लिए सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण है। पहली सिंचाई को 25 से 30 दिन के बाद करना चाहिए और दूसरी सिंचाई जब फलियां भरने की अवस्था में हो, तब करनी चाहिए। यदि जाड़े में वर्षा हो जाती है, तो दूसरी सिंचाई न करने पर भी अच्छी उपज हो सकती है। ध्यान रहे कि सिंचाई करते समय सरसों के फूलों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। सिंचाई के लिए पट्टी विधि बेहतर है। खेत की चौड़ाई के अनुसार 4 से 6 मीटर चौड़ी पट्टी बनाकर सिंचाई करनी चाहिए, जिससे पानी का वितरण समान रूप से हो।
खाद और उर्वरक | Manure and fertilizers for mustard crop -
खाद और उर्वरक का सही उपयोग सरसों की फसल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध हो तो उस खेत के लिए 6 से 12 टन सड़े हुए गोबर की खाद, 160 से 170 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 किलोग्राम म्यूरेट और पोटाश, साथ ही 200 किलोग्राम जिप्सम बुवाई से पहले मिलाना उपयुक्त होता है। यूरिया की आधी मात्रा बुवाई के समय में और बची हुई आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद खेत में मिला देनी चाहिए। जबकि वहाँ सिंचाई के लिए उपयुक्त साधन उपलब्ध न हो तब वहां के लिए बुवाई के समय 4 से 5 टन सड़े हुए गोबर की खाद, 85 से 90 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 33 किलोग्राम म्यूरेट और पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करते समय मिलाना चाहिए।
खरपतवार का नियंत्रण | Weed control sarso ki kheti -
सरसों की खेती में, बुवाई के 15 से 20 दिन बाद खेत से घने पौधों को निकाल देना चाहिए और उनकी आपसी दूरी 15 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए। खरपतवार को खत्म करने के लिए सिंचाई से पहले खेत में निराई और गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवार खत्म न होने की स्थिति में, दूसरी सिंचाई के बाद भी निराई और गुड़ाई करना चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए, बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर पेंडीमेथालीन 30 ईसी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
कटाई और भंडारण | Harvesting and storage -
सरसों की फसल को जब 75% फलियां सुनहरे रंग की हो जाएं, तब उसे काटना चाहिए। फसल को मशीन से या हाथ से काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज को अलग कर लेना चाहिए। सरसों के बीज को अच्छी तरह से सूखने देने के बाद ही उसका भंडारण करना चाहिए।
उत्पादन | Mustard Crop Production -
सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था न होने पर खेतों में 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज हो सकती है, जबकि सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होने पर 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है।
Conclusion | सारांश -
किसान भाइयों इस ब्लॉग में, हमने आप को सरसों की खेती (sarso ki kheti) के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी, खेत की तैयारी, बीज की मात्रा, उपयुक्त किस्में, सिंचाई, खाद और उर्वरक का उपयोग, खरपतवार का नियंत्रण, फसल की कटाई, और भंडारण की जानकारी के बारें में विस्तार में बताया हैं।
FAQ | बार - बार पूछे जाने वाले सवाल -
1. प्रश्न: सरसों की खेती कब करनी चाहिए?
उत्तर: सरसों की खेती का समय मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक होता है।
2. प्रश्न: सरसों की बुआई के लिए उचित बीज की मात्रा क्या होनी चाहिए?
उत्तर: अगर सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं, तो प्रति एकड़ के लिए 2 किलोग्राम सरसों के बीज का प्रयोग करें. अगर सिंचाई के साधन कम है, तो 3 किलोग्राम सरसों के बीज का प्रयोग करें.
3. प्रश्न: सरसों की खेती के लिए सही खाद और उर्वरक कौन-कौन से हैं?
उत्तर: सरसों की फसल के लिए सड़े हुए गोबर की खाद, यूरिया, सिंगल सुपर फॉस्फेट, म्यूरेट, और पोटाश का सही मिश्रण उपयुक्त है।
4. प्रश्न: सरसों की फसल को कब काटना चाहिए?
उत्तर: सरसों की फसल को काटना जब 75% फलियां सुनहरे रंग की हो जाएं, तब करना चाहिए।
5. प्रश्न: सरसों की फसल की उपज में सिंचाई का क्या महत्व है?
उत्तर: सिंचाई की सही प्रविधि से सरसों की फसल की उत्पादकता में वृद्धि होती है और उच्च मान की उपज प्राप्त होती है।
लेखक -
भारतअॅग्री कृषि डॉक्टर