तोरई (Ridge Gourd) एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है, जो लौकी और कद्दू के परिवार से संबंधित है। यह भारत में गर्मियों के मौसम में सबसे अधिक पसंद की जाने वाली सब्जी है। इसके फलों का उपयोग सब्जी, सूप, और आचार बनाने में किया जाता है। तोरई का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है, क्योंकि इसमें विटामिन्स और खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसका उत्पादन आसान होता है, और कम देखभाल में भी अच्छी पैदावार देती है। इस फसल की खेती से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ भी मिलता है।
भारत में तोरई की खेती:
तोरई की खेती मुख्यतः उत्तर भारत, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में की जाती है। इसकी खेती अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में की जाती है, जहां इसके लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी उपलब्ध होती है।
तोरई की खेती का समय:
तोरई की खेती का सर्वोत्तम समय गर्मियों में होता है। मार्च से अप्रैल और जून से जुलाई के बीच इसका बीज बोया जाता है। वर्षा ऋतु में भी इसकी खेती की जा सकती है, जिससे इसके फलों की उपज अधिक होती है।
मौसम और जलवायु:
तोरई की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है। 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके विकास के लिए उपयुक्त है। अत्यधिक ठंड या पाला इस फसल के लिए हानिकारक हो सकता है।
खेत की तैयारी और मिट्टी :
तोरई की खेती के लिए खेत की तैयारी करते समय मिट्टी को 2-3 बार हल और पाटा चलाकर भुरभुरा बना लें। खेत में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। 10-15 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ में मिलाकर खेत को तैयार किया जाता है।
तोरई की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। इस मिट्टी में अच्छी जल धारण क्षमता होनी चाहिए। 6-7 पीएच वाली मिट्टी तोरई की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त होती है।
तोरई की बेस्ट किस्में:
1. कोयम्बटूर 1 (Coimbatore 1): यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है और इसमें अच्छे आकार की तोरई होती है। इसकी फसल लगभग 40-45 दिनों में तैयार हो जाती है।
2. पूसा चिकनी (Pusa Chikni): यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित किस्म है। यह किस्म रोग-प्रतिरोधक है और बड़े आकार की चिकनी तोरई देती है।
3. अरका निकेतन (Arka Niketan): यह ऊँची पैदावार देने वाली किस्म है और ताजा सब्जी उत्पादन के लिए उपयुक्त है। इसकी फलने की अवधि लंबी होती है, जिससे लंबे समय तक फसल प्राप्त की जा सकती है।
4. पूसा नसदार (Pusa Nasdar): यह किस्म रोग प्रतिरोधी और जल्दी तैयार होने वाली है। फल छोटे और चिकने होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत पाते हैं।
5. नरेन्द्र तोरई 1 (Narendra Torai 1): उत्तर प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई यह किस्म सूखे क्षेत्रों में भी बेहतर उत्पादन करती है।
6. आशीर्वाद F1 हाइब्रिड (Aashirwad F1 Hybrid): यह किस्म हाइब्रिड है, जो उच्च उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है।
7. नवीन 26 (Naveen 26): यह हाइब्रिड किस्म है जो ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसमों में उगाई जा सकती है। ताजा और सब्जी उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
भ्रमशक्ति (Bhramshakti): इस किस्म की तोरई लंबी और चमकदार होती है, जो बाजार में अधिक मांग में रहती है।
तोरई की खेती के बीज दर प्रति एकड़:
तोरई की खेती के लिए प्रति एकड़ 1.5 से 2 किलो बीज की आवश्यकता होती है। अच्छे अंकुरण और पौधों की उचित दूरी को ध्यान में रखते हुए बीज का प्रयोग करना चाहिए।
तोरई की फसल के लिए खाद और उर्वरक की प्रति एकड़ मात्रा और समय:
👉गोबर की खाद: 10-15 टन
👉नाइट्रोजन (N): 50-60 किलोग्राम
👉फॉस्फोरस (P): 30-40 किलोग्राम
👉पोटाश (K): 20-25 किलोग्राम
खाद और उर्वरक की मात्रा फसल बोने के समय और 30 दिन बाद डाली जाती है।
तोरई की फसल में प्रमुख कीटों की समस्या:
1. पत्ती छेदक कीट - क्रिस्टल प्रोक्लेम कीटनाशक 80 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।
2. फल मक्खी - बायर फेनॉक्स क्विक कीटनाशक 100 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।
3. सफेद मक्खी - टाटा मानिक कीटनाशक 100 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।
4. जैसिड - बायर कॉन्फिडोर कीटनाशक 100 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।
5. रेड स्पाइडर माइट - बायर ओबेरॉन कीटनाशक - 150 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।
6. थ्रिप्स - बायर रीजेंट कीटनाशक 400 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।
7. तना छेदक कीट - एफएमसी कोराजन कीटनाशक 60 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।
तोरई की फसल में प्रमुख रोगों की समस्या:
1. पाउडरी मिल्ड्यू - इंडोफिल अवतार फफूंदनाशी 300 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।
2. डाउनी मिल्ड्यू - क्रिस्टल टिल्ट फफूंदनाशी 150 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।
3. एन्थ्रेक्नोज - बायर एंट्राकोल फफूंदनाशी 400 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।
4. विल्ट और जड़ गलन - बायोस्टेड रोको फफूंदनाशी 300 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार ड्रेंचिंग करें।
5. अल्टरनेरिया ब्लाइट - बायर नेटिवो फफूंदनाशी 80 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार उपयोग करें।
6. बैक्टीरियल लीफ स्पॉट - टाटा रैलिस ब्लिटोक्स फफूंदनाशी 400 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।
तोरई की तुड़ाई और समय:
तोरई की तुड़ाई बुवाई के 45-50 दिनों के बाद शुरू होती है। जब फल पूर्ण रूप से विकसित और मुलायम हो जाएं, तब उसकी कटाई करनी चाहिए। फलों की नियमित कटाई से उपज बेहतर होती है।
तोरई की फसल प्रति एकड़ उत्पादन:
तोरई की फसल से प्रति एकड़ 80-100 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। उपज किस्म, बीज, और फसल प्रबंधन पर निर्भर करती है।
सारांश:
तोरई की खेती भारत में एक लाभकारी व्यवसाय है, जिसे कम खर्च और समय में बेहतर मुनाफा दिया जा सकता है।
इसके लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन आवश्यक है। समय पर खाद, उर्वरक और कीट-रोग नियंत्रण से फसल की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
तोरई की खेती के लिए सही किस्म और हाइब्रिड बीजों का चयन करना आवश्यक है। कटाई के सही समय पर फल उतारने से गुणवत्ता और उपज दोनों में वृद्धि होती है।
अक्सर पूछे जानें वाले प्रश्न:
1. तोरई की खेती किन क्षेत्रों में की जाती है?
उत्तर - तोरई की खेती उत्तर भारत, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, और दक्षिण भारत में होती है।
2. तोरई की बुवाई का सही समय कौन सा है?
उत्तर - तोरई की बुवाई मार्च से अप्रैल और जून से जुलाई के बीच की जाती है।
3. तोरई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन सी है?
उत्तर - तोरई की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
4. तोरई की बेस्ट किस्में कौन-कौन सी हैं?
उत्तर - तोरई की बेस्ट किस्मों में कोयम्बटूर 1, पूसा चिकनी, और अरका निकेतन शामिल हैं।
5. तोरई की फसल में प्रमुख रोग कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर - प्रमुख रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू, और एन्थ्रेक्नोज शामिल हैं।
6. तोरई की तुड़ाई का सही समय क्या है?
उत्तर - तुड़ाई बुवाई के 45-50 दिनों के बाद, जब फल पूरी तरह विकसित हो जाएं, करनी चाहिए।
7. तोरई की फसल से प्रति एकड़ कितनी उपज प्राप्त होती है?
उत्तर - तोरई की फसल से प्रति एकड़ 80-100 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है।
लेखक
BharatAgri Krushi Doctor