मूंग के प्रमुख रोग एवं उनके नियंत्रण के बारे में जानें !

मूंग के प्रमुख रोग एवं उनके नियंत्रण के बारे में जानें !

मूंग के प्रमुख रोग एवं उनके नियंत्रण के बारे में जानें !

नमस्कार किसान भाइयों आज के लेख में हम मूंग की खेती (Green gram cultivation) के बारे में विस्तार से जानने वाले हैं। भारत में मूंग दाल (Moong Dal) की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है अब अगर बुवाई के समय की बात करें तो हरी मूंग (Green gram) की खेती भारत में तीनों मौसम खरीफ ,रबी और जायद में की जाती है। 

लेकिन उत्तर भारत की बात करें तो गर्मियों में मूंग की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हैं। मूँग का उपयोग दाल (Moong Dal) के रूप में किया जाता हैं। मूंग में अच्छी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, मूंग की फसल से फलियों को तोड़ने के बाद वाकी बचे हुए हिस्से को मिट्टी पलट हल से  मिट्टी में दबा देने चाहिए जिससे हरी खाद का भी काम हो जाता है।

मूंग की खेती करने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति में वृद्धि होती है। मूंग की खेती यदि सही समय और सही तरीके से की जाए तो इससे किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिल सकता है।तो चलिये आगे बढ़ते हैं और मूंग (Green gram) की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगो के  बारे में चर्चा करते हैं। 

मूंग के प्रमुख रोग एवं उनका नियंत्रण  | Green gram disease management in summer 

जो किसान भाई गर्मियों में मूंग की खेती (moong ki kheti) करते हैं, उनके लिए अच्छी बात ये है की इस फसल में ज्यादा पानी की और खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कम से कम लागत में भी इसकी अच्छी पैदावार ले सकते हैं। लेकिन मूंग दाल (Moong Dal) की खेती करते समय moong ki fasal को कुछ रोगों जैसे - विषाणुजनित रोग पीला शिरा मोजैक(Yellow Vein Mosaic virus) रोग और चूर्णिल आसिता (पाउड्री मिल्ड्यू - Powdery Mildew) से फसल को सुरक्षित रखना चाहिए। 

  

मूंग की फसल के प्रमुख रोग | Major Green gram disease

अब हम मूंग की फसल (Green gram disease) में लगने वाले प्रमुख रोगो के बारे में तथा उनके नियंत्रण के बारे में विस्तार से जानेंगे - 

मूंग में येलो मोजेक वायरस | Yellow Vein Mosaic virus in Moong

येलो मोजेक वायरस, मूंग की फसल में लगने वाला प्रमुख रोग (major disease of moong crop) है इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। जो बाद में सूखकर गिर जाती है, येलो मोजेक वायरस के लगने से मूंग (Green gram) की फसल में फलियाँ सही से नहीं बनती हैं। जिसके कारण किसानों को सही से उत्पादन नहीं मिल पाता है। मूंग (Green gram) की फसल में येलो मोजेक वायरस (Yellow Vein Mosaic virus) के फैलने का प्रमुख कारण सफेद मक्खी को माना जाता है।

मूँग में येलो मोजेक वायरस नियंत्रण के उपाय | yellow mosaic virus control measures

अब हम कुछ बिन्दुओं के माध्यम से येलो मोजेक वायरस (Yellow Vein Mosaic virus) के नियंत्रण के बारे में जानेंगे -

  • किसान भाइयों सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें मूंग (Green gram) के बीज के जमाव के 10 से 15 दिनों बाद खेतो में पीले स्टिकी ट्रैप (yellow sticky traps) को 15 प्रति एकड़ के हिसाब से लगाने चाहिए।
  • अगर फसल में सफेद मक्खी दिख रही हो तो नीम तेल का 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 
  • यदि ज्यादा मात्रा में सफेद मक्खी दिख रही हो तो अरेवा कीटनाशी (Dhanuka Areva insecticide) को 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 

यहाँ जानें धानुका अरेवा कीटनाशी के बारे में  | Know about Areva insecticide

अब हम टेबल के माध्यम से देखेंगे अरेवा कीटनाशी के बारे में - 

उत्पाद का नाम

धानुका अरेवा 25% डब्लू जी

तकनीकी नाम 

थियामेथोक्सम 25% डब्लू जी

लक्षित कीट 

जैसिड,थ्रिप्स,सफ़ेद मक्खी,तना छेदक, पत्ती मोडक, सभी फुदके कीट, माहू, सिल्ला,टी मॉस्किटो बग, व्होरल मैगॉट्स

छिड़काव मात्रा/एकड़ (Thiamethoxam 25 wg Uses)

40-80 ग्राम प्रति एकड़

प्रमुख फसलें (dhanuka areva uses)

सभी फसलें 

क्रिया विधि 

संपर्क और पेट क्रिया

कंपनी नाम

धानुका एग्रीटेक 


मूँग में पाउडरी मिल्ड्यू रोग की पहचान | Powdery Mildew rog ki pahchan 

मूंग की फसल में लगने वाला प्रमुख रोग है इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियां , कलियाँ , टहनियाँ व फूलों पर सफेद पाऊडर के रूप में धब्बे दिखाई देते है। सफेद पाउडर पत्तियों की दोनों सतहों पर सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बों के रूप में उत्पन्न होते हैं व धीरे-धीरे फैलकर पत्ती की सारी सतह पर फैल जाते हैं। रोगी पत्तियां सख्त होकर मुड़ जाती हैं। ज्यादा सक्रमण होने पर पत्तियाँ सूख कर झड़ जाती हैं।

मूँग में पाउडरी मिल्ड्यू रोग नियंत्रण के उपाय | Powdery Mildew rog control measures

अब हम कुछ बिन्दुओं के माध्यम से पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नियंत्रण के बारे में जानेंगे - 

  • चूर्णिल आसिता (पाउड्री मिल्ड्यू) रोग के लक्षण जैसे ही इक्का-दुक्का फसलों पर दिखना शुरू हो तो उसी समय बिना देरी किये अवतार कवकनाशी (avtar fungicide) को 300-400 ग्राम/एकड़ की मात्रा के हिसाब से 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 
  • पाउडरी मिल्ड्यू रोग का विस्तार बहुत तेजी से होता हैं। इस रोग के लगने से पत्तियों के ऊतक क्षय बहुत तेजी से होता है तो इस रोग का नियंत्रण जल्दी हो तो उसके लिए ताक़त कवकनाशी (Tata Rallis Taqat fungicide) को 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 

यहाँ जानें अवतार कवकनाशी के बारे में  | Know about avtar Fungicide

अब किसान (farmer) भाइयों पाउडरी मिल्ड्यू रोग की दवाई के लिए इंडोफिल अवतार कवकनाशी (Avtar Fungicide) के बारे में एक बार विस्तार से जानते हैं - 

उत्पाद का नाम

इंडोफिल अवतार फफूंदनाशी (indofil avtar)

तकनीकी नाम 

हेक्साकोनाज़ोल 4% + ज़िनेब 68% WP

लक्षित रोग 

शीथ ब्लाइट, ब्राउन स्पॉट, ब्लास्ट, अनाज मलिनकिरण,ब्लैक रोट, ग्रे ब्लाइट, ब्लिस्टर ब्लाइट,स्कैब, लीफ ड्राप, ब्लाइट, पाउडर फफूंदी, कोर रोट, लीफ ब्लाइट, टर्सिकम ब्लाइट,पत्ती धब्बा,रॉट 

पर्णीय छिड़काव मात्रा/एकड़

400 ग्राम प्रति एकड़

प्रमुख फसलें

धान, सेब, मक्का, कपास (अधिकतर फसलें) 

क्रिया विधि 

यह संपर्क और प्रणालीगत कवकनाशी संयोजन है।

कंपनी नाम 

इंडोफिल कम्पनी ( इंडोफिल अवतार fungicide )


यहाँ जानें ताकत कवकनाशी के बारे में  | Know about Taqat Fungicide

अब किसान (farmer) भाइयों पाउडरी मिल्ड्यू रोग की दवाई के लिए टाटा कंपनी की ताक़त कवकनाशी के बारे में विस्तार से जानते है - 

उत्पाद का नाम

ताकत  कवकनाशी (Tata Rallis Taqat fungicide)

तकनीकी नाम

हेक्साकोनाज़ोल 5% + कैप्टान 70% WP

लक्षित रोग

डाउनी मिल्ड्यू , पाउडरी मिल्ड्यू, एन्थ्रेक्नोज, लेट ब्लाइट, अर्ली ब्लाइट, और ग्रे मिल्ड्यू 

पर्णीय छिड़काव मात्रा/एकड़

2 ग्राम/लीटर पानी

प्रमुख फसलें

चावल, गन्ना, कपास, गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, सोयाबीन, करेला, भिंडी, मक्का, मूंगफली और सभी फलों, सब्जियों 

क्रिया विधि

संपर्क और प्रणालीगत कवकनाशी

कंपनी का नाम

टाटा रैलिस 


गर्मियों में मूंग की खेती से होने वाले लाभ | Moong daal ki kheti 

मूंग की खेती से निम्न लाभ होते हैं - 

  • मूंग की खेती करने से मूंग दाल का उत्पादन होता हैं। 
  • हरी खाद के रूप में उपयोग करने से भूमि की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में सुधार करता है। 
  • दलहनी कुल की फसल होने के कारण मिट्टी में नाइट्रोजन को फिक्स करती है। 
  • मूंग की खेती से समय की बचत, लागत में कमी, पानी की बचत आदि का लाभ होता है। 
  • मूंग की खेती के साथ अन्य फसलों की सहफसली खेती कर सकते हैं। 

किसान भाइयों मूंग के प्रमुख रोग एवं उनके नियंत्रण् आदि पर यह लेख पढ़कर कैसा लगा यह हमें कमेंट में बताना न भूलें और इस लेख को अपने अन्य किसान मित्रों के साथ भी शेयर करें। धन्यवाद! 

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