kele ki kheti kaise karen

Kele Ki Kheti: केले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

केला भारत में सबसे महत्वपूर्ण और लाभकारी फलों में से एक है। यह ऊर्जा और पोषण से भरपूर फल है, जिसका उपयोग खाने, शेक और अन्य खाद्य पदार्थों में होता है। केले की खेती कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली फसल है, जिससे किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। केले की खेती करने के लिए उचित प्रबंधन, सही किस्मों का चयन, और उर्वरक के सही उपयोग से उत्पादन को 1 पेड़ से 45-50 किलो तक बढ़ाया जा सकता है। यह लेख केले की खेती के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करता है, जो किसानों को उन्नत और लाभकारी खेती में मदद करेगा।


भारत में केले की खेती:

भारत में केले की खेती प्रमुख रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश में की जाती है। यह देश के लगभग सभी हिस्सों में उगाया जाता है क्योंकि केले की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु अनुकूल होती है। भारत केले का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है।


केले की खेती का समय:

केले की खेती का समय मुख्य रूप से बारिश के मौसम में जून से जुलाई के बीच होता है। हालांकि, जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा है, वहां इसे सालभर उगाया जा सकता है। बेहतर उत्पादन के लिए रोपण का सही समय बहुत महत्वपूर्ण है।


मौसम और जलवायु:

केले की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे अनुकूल होती है। केले की फसल के लिए 25-30°C तापमान उपयुक्त है। अत्यधिक ठंड और गर्मी केले के विकास को प्रभावित करती है। केले के पौधों को पर्याप्त धूप और पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन भारी वर्षा या ठंडे मौसम में इनकी वृद्धि रुक सकती है।


खेत की तैयारी और मिट्टी:

केले की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना आवश्यक है। खेत की गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाएं ताकि जल निकासी की सही व्यवस्था हो सके। खेत की मिट्टी में जैविक खाद, गोबर की खाद और सड़ी हुई खाद मिलाकर उसकी उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है। खेत को समतल और खरपतवार मुक्त रखें।

केले की खेती के लिए दोमट या जल निकासी युक्त बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। केले के पौधों को भारी और जल-जमाव वाली मिट्टी पसंद नहीं होती है, क्योंकि इससे जड़ों को नुकसान हो सकता है।


बेस्ट किस्मों की जानकारी:

1. द्वारफ कैवेंडिश (Dwarf Cavendish): इस किस्म का पौधा कम ऊंचाई का होता है और इसे विशेष रूप से व्यापारिक उद्देश्यों के लिए उगाया जाता है। फल स्वादिष्ट और बड़े होते हैं।

2. रोबस्‍टा (Robusta): रोबस्‍टा किस्म को इसकी बड़ी उत्पादन क्षमता और मजबूत पौधों के लिए जाना जाता है। यह किस्म अधिकतर भारतीय बाजारों में लोकप्रिय है।

3. ग्रांड नैन (Grand Nain): इसे सबसे बेहतरीन किस्मों में से एक माना जाता है और इसका उपयोग बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खेती में किया जाता है। इसका फल बड़ा और गुणवत्ता में उत्कृष्ट होता है।

4. राजापुरी (Rajapuri): यह किस्म छोटे आकार के पौधों वाली होती है और इसे बगीचों में उगाना आसान होता है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं।

5. नेंदरन (Nendran): केरल और दक्षिण भारत में लोकप्रिय यह किस्म विशेष रूप से प्रसंस्करण उद्योग में उपयोग की जाती है।

6. पूवन (Poovan): पूवन किस्म में छोटे और मीठे केले होते हैं, जिन्हें स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। यह अच्छी गुणवत्ता के फलों के लिए जानी जाती है।

7. रसमलाई (Rasthali): इस किस्म के केले छोटे, मीठे, और सुगंधित होते हैं। यह मुख्यतः दक्षिण भारत में उगाई जाती है।

8. मालभोग (Malbhog): पूर्वोत्तर भारत में लोकप्रिय इस किस्म के केले स्वाद में बहुत अच्छे होते हैं और इन्हें डेसर्ट के रूप में भी खाया जाता है।

9. नाइन्टी (Ney Poovan): यह किस्म मुख्य रूप से छोटे फलों और खेती की आसानी के कारण उगाई जाती है। इसकी मांग दक्षिणी और पश्चिमी भारत में अधिक होती है।

10. बसराई (Basrai): महाराष्ट्र में प्रमुख रूप से उगाई जाने वाली इस किस्म में ऊंची गुणवत्ता के फल होते हैं, जो बड़े पैमाने पर बाजार में बिकते हैं।


केले की खेती के बीज दर प्रति एकड़:

केले की खेती के लिए प्रति एकड़ लगभग 1,100 से 1,200 पौधों की आवश्यकता होती है। एक पौधे की औसत दूरी लगभग 6 फीट होनी चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त पोषण और जगह मिल सके।


केले के पौधों की रोपाई और दूरी:

केले के पौधों की रोपाई मानसून के मौसम में जून-जुलाई के दौरान की जाती है। पौधों के बीच की दूरी 6 फीट x 6 फीट होनी चाहिए। सही दूरी से पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और सूर्य का प्रकाश पौधों पर पूरी तरह से पड़ता है, जिससे उपज बढ़ती है।


खाद और उर्वरक:

1. गोबर की खाद (FYM): मात्रा: 15-20 टन प्रति एकड़ खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाएं। यह मिट्टी की उर्वरता और पानी धारण क्षमता बढ़ाता है।

2. नाइट्रोजन (N): मात्रा: 200-250 किलोग्राम प्रति एकड़ तीन भागों में विभाजित करके उपयोग करें। 3 महीने, 6 महीने और 9 महीने बाद देना चाहिए।

3. फॉस्फोरस (P₂O₅): मात्रा: 100-125 किलोग्राम प्रति एकड़ इसे बेसल डोज (खेत की तैयारी के समय) के रूप में दिया जाता है।

4. पोटाश (K₂O): मात्रा: 300-400 किलोग्राम प्रति एकड़ इसे तीन भागों में विभाजित करें और नाइट्रोजन के साथ ही लागू करें।

5. जिंक सल्फेट: मात्रा: 10-20 किलोग्राम प्रति एकड़ जिंक की कमी होने पर इसका छिड़काव करें।

6. माइक्रोन्यूट्रिएंट्स: यह आवश्यक होते हैं और इनमें बोरॉन, मैग्नीशियम, आयरन आदि शामिल होते हैं। माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की मात्रा का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए।


फसल में कीटों की समस्या:

1. तना बेधक कीट - क्रिस्टल प्रोक्लेम कीटनाशक 80 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।  

2. पत्ती खाने वाले कीट - धानुका जैपेक कीटनाशक 80 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें। 

3. एफिड - यूपीएल लांसर गोल्ड कीटनाशक 400 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें। 

4. मकड़ी - बायर ओबेरॉन कीटनाशक - 150 मिली प्रति एकड़ उपयोग करें।

5. थ्रिप्स - सिंजेटा अलिका कीटनाशक 80 मिली प्रति एकड़ अनुसार उपयोग करें ।  

6. केले की मक्खी - बायर फेनॉक्स क्विक कीटनाशक 100 मिली प्रति एकड़ अनुसार उपयोग करें 

7. ब्लैक वेविल - नागार्जुन प्रोफेक्स सुपर 300 मिली प्रति एकड़ अनुसार उपयोग करें। 

8. रूट नॉड नेमाटोड - बायर वेलम प्राइम 300 मिली प्रति एकड़ अनुसार ड्रेंचिंग में उपयोग करें।

9. शूट बोरर - एफएमसी कोराजन कीटनाशक  60 मिली प्रति एकड़ अनुसार उपयोग करें। 


फसल में 10 रोगों की समस्या:

1. पानामा रोग - बीएएसएफ कैब्रियो टॉप फफूंदनाशी 450 मिली एकड़ अनुसार उपयोग करें। 

2. सिगाटोका रोग - बायर एंट्राकोल फफूंदनाशी 400 ग्राम एकड़ अनुसार उपयोग करें। 

3. जड़ सड़न - बायोस्टेड रोको फफूंदनाशी 300 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार ड्रेंचिंग करें।  

4. केले का पत्ती धब्बा रोग - क्रिस्टल टिल्ट फफूंदनाशी 150 मिली प्रति एकड़ अनुसार छिड़काव करें।  

5. बैक्टीरियल विल्ट - टाटा रैलिस ब्लिटोक्स फफूंदनाशी  400 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार ड्रेंचिंग करें। 

6. एंथ्रेक्नोज - बायर नेटिवो फफूंदनाशी 80 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार छिड़काव करें। 

7. फ्यूजेरियम विल्ट - सिजेंटा रिडोमिल गोल्ड फफूंदनाशी 300 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार ड्रेंचिंग करें। 

8. राइजोम सड़न - यूपीएल साफ फफूंदनाशी 400 ग्राम प्रति एकड़ अनुसार ड्रेंचिंग करें। 


फसल की कटाई और समय:

केले की कटाई रोपाई के 12 से 15 महीने बाद की जाती है। जब फल का रंग हल्का हरा और आकार पूर्ण होता है, तो उसकी कटाई की जाती है। कटाई के बाद फलों को सावधानीपूर्वक संग्रहित करना चाहिए ताकि वे खराब न हों।


प्रति एकड़ उत्पादन:

अच्छी देखभाल और उर्वरक प्रबंधन के साथ, केले की फसल से प्रति एकड़ लगभग 30 से 40 टन का उत्पादन हो सकता है। यदि सभी प्रबंधन तकनीकें सही ढंग से लागू की जाएं, तो प्रति पौधा 45-50 किलो तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।


सारांश:

केले की खेती लाभकारी है यदि किसान सही समय पर पौधों की देखभाल, उर्वरक का सही उपयोग, और कीट तथा रोग नियंत्रण पर ध्यान दें। 

केले की खेती से प्रति एकड़ अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों का चयन और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाना आवश्यक है।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: 

1. भारत में केले की खेती किन राज्यों में होती है?

उत्तर - महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश प्रमुख राज्य हैं।

2. केले की खेती का सबसे अनुकूल मौसम कौन सा है?

उत्तर - जून से जुलाई के बीच मानसून का मौसम केले की खेती के लिए सबसे अनुकूल होता है।

3. केले की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी कौन सी है?

उत्तर - दोमट या जल निकासी युक्त बलुई दोमट मिट्टी केले की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

4. केले की खेती के लिए प्रति एकड़ कितने पौधों की आवश्यकता होती है?

उत्तर - प्रति एकड़ 1,100 से 1,200 पौधों की आवश्यकता होती है।

5. केले के पौधों की रोपाई के लिए उपयुक्त दूरी कितनी होनी चाहिए?

उत्तर - पौधों के बीच की दूरी 6 फीट x 6 फीट होनी चाहिए।

6. केले की प्रमुख किस्में कौन-कौन सी हैं?

उत्तर - द्वारफ कैवेंडिश, रोबस्‍टा, ग्रांड नैन, राजापुरी, और नेंदरन प्रमुख किस्में हैं।

7. केले की फसल में प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं?

उत्तर - तना बेधक, एफिड, मकड़ी, थ्रिप्स, और केले की मक्खी प्रमुख कीट हैं।

8. केले की फसल में प्रमुख रोग कौन-कौन से हैं?

उत्तर - पानामा रोग, सिगाटोका रोग, जड़ सड़न, केले का पत्ती धब्बा रोग, और एंथ्रेक्नोज प्रमुख रोग हैं।

9. केले की फसल का प्रति एकड़ औसत उत्पादन कितना हो सकता है?

उत्तर - केले की फसल का औसत उत्पादन प्रति एकड़ 30 से 40 टन तक हो सकता है।


लेखक

BharatAgri Krushi Doctor


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